Karva Chauth Vrat Katha

Story

करवा चौथ व्रत कथा: प्रेम, भक्ति और रीति-रिवाजों की बहुत पुरानी परंपरा


13 mins
read

fb
insta
x
pinterest

परिचय करवा चौथ व्रत कथा का:

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ के रूप में मनाया जाता है। इसका संबंध करवा माता और भगवान गणेश से भी है। करवा चौथ व्रत कथा भारत में मनाए जाने वाले सबसे बड़े त्योहारों में से एक है, और इसका सांस्कृतिक तथा धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। यह मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है और इसका ध्यान मुख्य रूप से वैवाहिक संबंध, भक्ति और प्रेम पर होता है। यह व्रत सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक किया जाता है, ऐसा माना जाता है कि भगवान से अपने के पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्रार्थना पूरी होगी। हालांकि इसका संबंध भारत की महान आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर से है, करवा चौथ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और एकता का प्रतीक भी माना जाता है।

यह पर्व भारत के उत्तर, नेपाल और पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार पूर्णिमा के चार दिन बाद होता है। यह दिन प्रेम और वैवाहिक एकता का उत्सव होता है, जिसमें मान्यता, अनुष्ठान और भक्ति का संगम होता है। 

2025 में करवा चौथ पूजा का समय 10 अक्टूबर को शाम 5:57 से 7:11 बजे तक है।

करवा चौथ व्रत की उत्पत्ति और महत्व

करवा चौथ की जड़ें हिंदू धर्म के पौराणिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अतीत में हैं। “करवा चौथ” नाम संस्कृत शब्दों “करवा” (मिट्टी का बर्तन) और “चौथ” (चौथा दिन) से लिया गया है। पारंपरिक रूप से, यह पर्व कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।

करवा चौथ की उत्पत्ति के कारण कई माने गए है, और इसे कृषि और आध्यात्मिक महत्व दोनों से जोड़ा जाता है। एक समय में यह पर्व मुख्य रूप से कृषि से जुड़ा था, विशेष रूप से गेहूं की बुआई से संबंधित था। महिलाएं बड़े मिट्टी के बर्तनों में गेहूं एकत्र करती थीं, जिसे करवा कहा जाता है, और अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करती थीं। समय के साथ यह अनुष्ठान वर्तमान स्वरुप में बदल गया, जिसमें महिलाएं अपने पति के लिए लंबी उम्र और खुशहाली की प्रार्थना करती थीं। एक और मान्यता भी है जिसमें करवा चौथ का संबंध महिला के पवित्र संबंध से जुड़ा हुआ है, खासकर उन महिलाओं से जो विवाहित थीं।

कहा जाता है कि महिलाएं इस व्रत को मित्रता, भाईचारे और सम्मान के प्रतीक के रूप में रखती थीं। इस समय उपहारों, मिठाइयों, चूड़ियों और रिबनों का आदान-प्रदान एक सामान्य परंपरा थी। ये उपहार केवल स्नेह ही नहीं बल्कि महिलाओं के बीच आपसी संबंध को भी प्रकट करते थे, जो परिवार की सीमाओं से बाहर जाकर एक सामुदायिक समर्थन और देखभाल का रूप लेते थे।

करवा चौथ की पूजा विधि और अनुष्ठान

करवा चौथ के दिन एक विशेष पूजा विधि का पालन किया जाता है, जिसमें कई धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान शामिल होते हैं। करवा चौथ केवल एक उपवास नहीं है; यह प्रेम, परंपरा और सामुदायिकता का उत्सव है, जो सांस्कृतिक रीति-रिवाजों में समाहित है। यह एक विशेष दिन होता है, जब महिलाएं पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ अपने पति के लिए उपवास करती हैं। 

सूर्योदय पूर्व की तैयारी: सर्गी और परिधान

करवा चौथ का दिन सूर्योदय से पहले शुरू होता है, और महिलाएं जल्दी उठकर सर्गी का सेवन करती हैं। सर्गी वह भोजन होता है जो महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले खाती हैं, ताकि वे पूरे दिन उपवासी रह सकें। सर्गी आमतौर पर सास द्वारा बहू को दी जाती है। इसमें ऊर्जा से भरपूर खाद्य पदार्थ होते हैं, जैसे फल, मिठाइयां, पराठे, मेवे, आदि। इसके बाद महिलाएं त्योहार के उपयुक्त परिधान पहनकर तैयार होती हैं, महिलाएं पारंपरिक रूप से लाल रंग के वस्त्र पहनती हैं, जैसे कि लाल साड़ी या लहंगा, जो उनके विवाहित जीवन की खुशी और सुख का प्रतीक होते हैं।

व्रत का पालन

सर्गी के बाद महिला उपवास शुरू करती हैं और सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक व्रत करती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं पूरी तरह से उपवासी रहती हैं और न तो पानी पीती हैं और न ही कुछ खाती हैं। दिनभर वे अपने पति के स्वस्थ और लंबी उम्र के लिए पूजा और प्रार्थना करती हैं। पूरे दिन में कुछ खास बातें होती हैं, जैसे पूजा करना, करवा चौथ की कथा सुनना, और अपने दीन-दुनिया से इतर भगवान से आशीर्वाद मांगना। यह एक बहुत ही पवित्र और कठिन व्रत होता है, जिसमें महिलाएं अपने आत्मबल और विश्वास का परीक्षण करती हैं।

संध्या पूजा और अनुष्ठान

दिन के अंत में महिलाएं पूजा की थाली तैयार करती हैं, जिसमें फल, मिठाइयां और दीपक होता है। सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान कहानी सुनने का होता है, जिसे एक बुजुर्ग महिला या पुजारी सुनाते हैं।

चंद्रमा पूजा और व्रत का समापन

दिनभर के उपवास के बाद, चंद्रमा के दर्शन होने पर व्रत का समापन होता है। करवा चौथ का सबसे प्रतीक्षित क्षण चन्द्रमा के दर्शन का होता है। जब चंद्रमा प्रकट होता है, तो महिलाएं छलनी के माध्यम से चंद्रमा को देखती हैं और फिर अपने पति के चेहरे को देखती हैं। यह एक विशेष विधि होती है, जिससे उनका व्रत पूर्ण होता है। उसके बाद पति अपनी पत्नी को पानी पिलाते हैं और मिठाई खिलाकर उसका व्रत खोलते हैं। इस समय का आदान-प्रदान एक भावनात्मक और धार्मिक अनुभव होता है, जो पति-पत्नी के रिश्ते को और प्रगाढ़ बनाता है।

पूजा सामग्री और पूजा विधि

करवा चौथ की पूजा के लिए कुछ विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है, जैसे:

  • करवा (मिट्टी का बर्तन) जिसमें पानी भरा हो
  • पूजा थाली जिसमें दीपक, सिंदूर, चावल, हल्दी, चंदन, फूल, फल, मिठाई, और अन्य पूजा सामग्री हो
  • छलनी (चंद्रमा के दर्शन के लिए)
  • नारियल और अन्य पूजन सामग्री

पूजा विधि इस प्रकार है:

1. स्नान और शुद्धता: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और घर को साफ-सुथरा रखें।

2. पूजा स्थान की तैयारी: पूजा स्थान को स्वच्छ करके वहां कलश स्थापित करें।

3. भगवान गणेश की पूजा: भगवान गणेश की पूजा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

4. करवा माता और अन्य देवी-देवताओं की पूजा: करवा माता, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें।

5. कथा सुनना: करवा चौथ की कथा सुनें और उसका पालन करें।

6. चंद्रमा दर्शन और व्रत का समापन: चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत खोलें और पति से आशीर्वाद प्राप्त करें।

करवा चौथ की कथा और प्रसंग

करवा चौथ की कथा अक्सर सुनाई जाती है, जिसमें प्रेम, बलिदान और पति-पत्नी के बीच के गहरे संबंध को बताया जाता है। सबसे प्रसिद्ध और प्रसिद्ध करवा चौथ की कथा महाभारत से जुड़ी हुई है।

द्रौपदी और अर्जुन की करवा चौथ कथा

महाभारत के अनुसार, द्रौपदी ने अर्जुन की जान बचाने के लिए करवा चौथ का व्रत किया। जब महाभारत के भीषण युद्ध के दौरान अर्जुन बहुत थक चुके थे और मृत्यु के निकट थे, तब द्रौपदी ने व्रत रखा ताकि अर्जुन की जान बच सके। उसने पूरे दिन उपवासी रहकर भगवान शिव और करवा माता की पूजा की और अपने पति अर्जुन के लिए प्रार्थना की। उसका यह व्रत इतना सशक्त था कि उसने न केवल अर्जुन की जान बचाई, बल्कि उस व्रत के प्रभाव से युद्ध में पांडवों की जीत भी सुनिश्चित हुई। यह शक्तिशाली करवा चौथ की कथा भक्ति, बलिदान और महिला के प्रेम की शक्ति का प्रतीक बन गई है, जो आज भी पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में करवा चौथ के अनुष्ठान को प्रेरित करती है।

वीरावती की कथा – करवा चौथ व्रत कथा

करवा चौथ की पूजा में विभिन्न कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से एक बहुत प्रसिद्ध और प्रेरणादायक कथा वीरावती की कथा से जुड़ी हुई है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि किसी भी व्रत को सही तरीके से और पूरी श्रद्धा के साथ करना चाहिए, क्योंकि यदि व्रत के नियमों का पालन ठीक से नहीं किया जाता है, तो उसका फल प्रतिकूल भी हो सकता है।

कथा आरम्भ

करवा चौथ का व्रत विशेष रूप से पति की लंबी उम्र और सुखमय जीवन के लिए रखा जाता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन उपवासी रहकर चंद्रमा की पूजा करती हैं और अपने पतियों के स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं। भारतीय परंपरा में ऐसी कई कथाएँ हैं जो इस व्रत के महत्व को स्पष्ट करती हैं। एक ऐसी ही प्रसिद्ध कथा वीरावती नामक एक लड़की की है, जो इस व्रत को लेकर एक गहरी सीख देती है।

कथा का प्रारंभ:

वीरावती एक बहुत प्यारी और समझदार लड़की थी। वह अपने परिवार में सबसे छोटी थी और अपने भाइयों से बहुत प्यार करती थी। एक वर्ष, उसने अपने पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए करवा चौथ का व्रत रखने का निश्चय किया। यह व्रत भारतीय महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर होता है, जिसे वे श्रद्धा और विश्वास से करती हैं।

वीरावती के मायके में भी यह परंपरा थी, लेकिन वह इस व्रत के महत्व को पूरी तरह से समझती नहीं थी। उसने अपने भाइयों से सुना था कि करवा चौथ के दिन उपवासी रहकर चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही व्रत को तोड़ा जा सकता है।

कथा में मोड़ – भाइयों का छल:

करवा चौथ का दिन था और वीरावती पूरे दिन उपवासी रही। दिनभर के कठिन उपवास के बाद वह अत्यधिक थक गई थी और चंद्रमा के उगने का इंतजार कर रही थी। लेकिन, उसकी स्थिति इतनी दयनीय हो गई थी कि वह जल्द से जल्द व्रत खोलना चाहती थी। उसके भाइयों ने उसकी स्थिति देखी और उसे छल से विश्वास दिलाने का फैसला किया।

उस दिन रात को, वीरावती के भाइयों ने एक वट के पेड़ पर एक दीपक (लालटेन) जलाया और उसे चन्द्रमा के रूप में दिखाया। वे उसे विश्वास दिलाने में सफल रहे कि चन्द्रमा निकल आया है। वीरावती ने बिना किसी संदेह के इस झूठ को सच मान लिया और चंद्रमा के दर्शन करने के बाद व्रत तोड़ने के लिए अर्घ्य दे दिया और भोजन करना शुरू कर दिया।

भोजन के बाद घटनाएं – पति की मृत्यु का समाचार:

लेकिन जैसे ही वीरावती ने भोजन करना शुरू किया, उसके शरीर में अचानक कुछ अजीब महसूस हुआ। पहले उसे सिर में भारीपन महसूस हुआ, फिर उसने छींक ली। इसके बाद, उसकी सास से एक संदेश आया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। यह खबर सुनकर वीरावती का दिल टूट गया और वह बहुत दुखी हो गई।

वीरावती की यह गलती थी कि उसने भाइयों के बहकावे में आकर चंद्रमा के दर्शन किए बिना व्रत तोड़ दिया। इस कारण उसके पति की मृत्यु हो गई थी। यह घटना वीरावती के लिए एक गहरी सीख बन गई।

इंद्राणी का मार्गदर्शन – व्रत का सही तरीके से पालन:

जब वीरावती बहुत दुखी हो गई और अपने पति की मृत्यु के बाद अपने कर्तव्यों पर पछता रही थी, तब इंद्राणी, जो देवी स्वर्गलोक में रहती थीं, ने वीरावती से संपर्क किया। इंद्राणी ने वीरावती को समझाया कि उसने व्रत के नियमों का पालन ठीक से नहीं किया। इंद्राणी ने उसे सलाह दी कि वह अगले साल फिर से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत पूरी श्रद्धा से रखें।

इंद्राणी ने यह भी कहा कि जब वह इस बार व्रत को सही तरीके से करेगी, तो उसका पति फिर से जीवित हो जाएगा। वीरावती ने इंद्राणी के कहे अनुसार अगले साल फिर से वही व्रत किया। इस बार उसने व्रत को पूरी श्रद्धा, निष्ठा और सच्चे मन से किया और चंद्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत तोड़ा।

पति का पुनः जीवन – व्रत का सच्चा फल:

वीरावती की पूजा और व्रत सही तरीके से हुआ, और भगवान ने उसकी प्रार्थनाओं को स्वीकार किया। उसके पति की मृत्यु के बाद, इंद्राणी के आशीर्वाद से वह पुनः जीवित हो गए। वीरावती की यह कहानी एक बड़ा संदेश देती है कि यदि कोई व्रत पूरी श्रद्धा, निष्ठा, और सही तरीके से किया जाए, तो भगवान अपनी कृपा से इच्छित फल देते हैं।

कथा का संदेश:

1. व्रत के नियमों का पालन: यह कथा यह सिखाती है कि किसी भी धार्मिक व्रत या अनुष्ठान को बिना नियमों का पालन किए नहीं करना चाहिए। व्रत के नियमों का उल्लंघन करने से न केवल व्रत का प्रभाव नष्ट हो जाता है, बल्कि व्यक्ति को दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं।

2. श्रद्धा और विश्वास: इस कथा से यह भी साफ होता है कि श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया कोई भी व्रत कभी व्यर्थ नहीं जाता। यदि हम सही तरीके से व्रत करते हैं, तो भगवान हमारी मनोकामना पूरी करते हैं।

3. अपने कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदारी: वीरावती की यह गलती हमें यह भी सिखाती है कि किसी भी धार्मिक कार्य को जल्दीबाजी में नहीं करना चाहिए। किसी भी पूजा-पाठ या व्रत को पूरी लगन और जिम्मेदारी के साथ करना चाहिए।

कथा से शिक्षा

वीरावती की कथा करवा चौथ के व्रत के महत्व को और गहरे तरीके से समझाती है। यह हमें यह बताती है कि व्रत को पूरी श्रद्धा, निष्ठा और सही विधि से करना चाहिए। जब हम किसी धार्मिक कृत्य को पूरी सच्चाई और निष्ठा के साथ करते हैं, तो भगवान हमें आशीर्वाद देते हैं। इस कथा से यह भी स्पष्ट होता है कि किसी भी व्रत या पूजा में नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है।

यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि हर व्रत का उद्देश्य केवल आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करना नहीं होता, बल्कि यह हमारे जीवन में प्रेम, भक्ति, त्याग और समर्पण की भावना को भी प्रगाढ़ करता है। जब हम अपने परिवार के लिए, विशेष रूप से अपने पति की लंबी उम्र और सुख-शांति की कामना करते हैं, तो हमारा व्रत पूरी तरह से सफल होता है और हम भगवान के आशीर्वाद से भरपूर होते हैं।

नवीन परिवर्तनों का प्रभाव

समाज में बदलते हुए समय के साथ करवा चौथ के पर्व में भी कुछ बदलाव आए हैं। आजकल करवा चौथ का पर्व न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि सामूहिक उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। महिलाएं इस दिन को एक साथ मिलकर मनाती हैं। महिलाएं अपनी पूजा, उपवासी और खुशियाँ शेयर करती हैं, जिससे यह पर्व और भी अधिक लोकप्रिय हो गया है। आधुनिकता के साथ इस पर्व की सांस्कृतिक धारा में बदलाव आया है, लेकिन इसके महत्व में कोई कमी नहीं आई है। यह पर्व आज भी अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान बनाए हुए है।

For interesting spiritual content, subscribe us on Youtube

निष्कर्ष करवा चौथ व्रत कथा:

 

करवा चौथ भारत के सबसे लोकप्रिय और मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है। करवा चौथ एक ऐसा पर्व है जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज की सांस्कृतिक धरोहर का भी अभिन्न हिस्सा है। यह व्रत प्रेम, भक्ति, समर्पण, और त्याग का प्रतीक है, और इससे एक परिवार और समाज की एकता और सहकारिता को बढ़ावा मिलता है। करवा चौथ के दिन महिलाएं न केवल अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं, बल्कि वे यह भी दर्शाती हैं कि वे अपने परिवार के लिए किसी भी बलिदान को करने के लिए तैयार हैं। इसके माध्यम से हम एक-दूसरे के प्रति अपने रिश्तों को और प्रगाढ़ बना सकते हैं और समाज में प्रेम और सौहार्द्र की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं।

करवा माता की आरती:

ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया।

जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया।। ओम जय करवा मैया।

सब जग की हो माता, तुम हो रुद्राणी।

यश तुम्हारा गावत, जग के सब प्राणी।।

कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, जो नारी व्रत करती।

दीर्घायु पति होवे , दुख सारे हरती।।

ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया।

जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया।।

होए सुहागिन नारी, सुख संपत्ति पावे।

गणपति जी बड़े दयालु, विघ्न सभी नाशे।।

ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया।

जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया।।

करवा मैया की आरती, व्रत कर जो गावे।

व्रत हो जाता पूरन, सब विधि सुख पावे।।

ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया।

जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया।।

Consultation poster

Follow Us

fbfb
instainsta
xx
linkedinlinkedin
pinterestpinterest
youtubeyoutube

Recent Spirituality

Contact Us

*

Submit

*

Buy Gemstones

gemstone

Labradorite 7.1 Ratti
acharyaganesh.shop

Buy Now

Buy Panna

Buy Rudraksha

rudraksha

1 Mukhi Rudraksha
acharyaganesh.shop

Buy Now

Explore Our Recent Courses

*

Show More

*
Acharya Ganesh Logo

Welcome to Acharya Ganesh, your premier destination for all things astrology. We’re dedicated to spreading the profound wisdom of astrology through our comprehensive range of services and online Astrology courses.

fbfb
instainsta
xx
linkedinlinkedin
pinterestpinterest
youtubeyoutube